बचपन के रंग में हम अपनी बातों, अपनी कोशिश और अपने विचारों को रख कर आप तक पहुँचाना चाहते है.
शनिवार, अक्तूबर 16
कविता : वो हामिद कहाँ है
वोहामिदकहाँहै
मेला वही है ,
ईद वही है ....
चूल्हा वही है ,
दादी वही है ....
आज भी अगुंलियाँ ,
जलती दादी की हैं ....
आखों में उसके ,
समंदर भरा है ....
मगर आज अपना ,
वो हामिद कहाँ है ....
इस भीड़ में ,
वो खोया कहाँ है ....
डरता है हामिद आज की समाज के सामने आने पर कहीं कोई ?
जवाब देंहटाएंTrue! but this is the outcome of our educational and social system, which is no where teaching students love and morals.
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