रविवार, अक्तूबर 31

कविता: चारो चोर गए सुधर

चारो चोर गए सुधर
एक गाँव में चार थे चोर।
रोज पकड़ते थे वे मोर॥
एक चोर पकड़ गया थाने में।
तीन गिर गए नाले में॥
नाले में भर गया था पानी।
चोरों की हो गई बदनामी॥
छोड़ी चारों ने बईमानी।
ख़त्म हुई उनकी शैतानी॥
चारो अब तो गए सुधर।
भाग के पहुँचे अपने घर॥
खेत में करने लगे वे काम।
गाँव में हुआ फ़िर उनका नाम॥
ख़त्म हुई उनकी बदनामी।
यही है चार चोरो की कहानी

लेखक : ज्ञान कुमार

कविता: कंप्यूटर भाई

कंप्यूटर भाई

कंप्यूटर भाई कंप्यूटर भाई
तुम क्यो होतो हो हमसे गुस्सा॥
गुस्सा तुमको अब नही करना है।
हमारा काम अब तुमको करना है॥
कंप्यूटर भाई कंप्यूटर भाई।
तुम कहाँ चले गए
बिजली गई तो तुम भी गए
मेरा काम अधूरा छोड़ गए
तुम्हारे सहारे सब काम चल रहा है।
तुम ही हो मेरे काम के साथी॥
अब साथ- साथ तुम्हे रहना है
अब मेरा काम भी करना है॥
कंप्यूटर भाई कंप्यूटर भाई।
तुम क्यो होतो हो हमसे गुस्सा

लेखक : सागर कुमार

शुक्रवार, अक्तूबर 29

कविता: जल है जीवन

जल है जीवन
जल है मेरा जीवन ।
क्या इसके बिना जीवन॥
सदा साफ जल को ही पिए।
खूब जीवन लम्बी जिए॥
सबकी प्यास बुझाता जल।
तन की थकान मिटाता जल॥
जल को न बर्बाद करे हम।
जल को बचाए मिलकर हम॥
जाने कितने को देता है जीवन।
इसके बिना बेकार है जीवन॥
जल है मेरा जीवन।
इसके बिना क्या जीवन ॥
लेखक : मुहम्मद चंदन तिवारी

कविता : क्या होगा उनका

क्या होगा उनका
बाढ़ के प्रभाव से ,
संसार के हर गाँव में ....
लोग हुये परेशान,
डूब गये उनके घर द्वार....
उसमे से कुछ डूब गये
उन्ही में कुछ बचे....
जो बचे वो हो गये बेघर,
जो बचे तो घूम रहे....
उनको लोग देख रहे,
जहाजो से कुछ खाने को पंहुचा रहे ....
वे पैकटो को ऊपर से लोक रहे,
लोकने में कुछ कुचल गये
कुचल कर वही मार गये
क्या होगा उनका.....
क्या मिलेगा उन्हें मुआवजा .....
लेख़क : अशोक कुमार

कहानी : चीटीं की मेहनत

चीटीं की मेहनत
एक बार बहुत तेज बारिस हो रही थी। जंगल के सभी जीव-जन्तु पक्षी भीग रहे थे। बहुत ज्यादा बारिश होने के कारण वह ठण्ड से कांप रहे थे। जंगल में चारो तरफ पानी ही पानी भरा था। हाथी सोचने लगे कि कितनी जल्दी धूप निकले तो अच्छा हो फिर थोड़ी देर बाद सूरज निकला और धूप चारो ओर तरफ फ़ैल गई । सभी हाथी छाया छोड़ कर धूप में आने लगे, बदन सूखने के बाद धीरे-धीरे सभी हाथी धूप से हटने लगे और इधर-उधर टहलने लगे। कुछ देर के बाद फिर जोर से बारिस होने लगी। इतनी तेज बारिस हुई कि सभी हाथी बहने लगे। एक चींटी पेड़ पर बैठी हाथी का बहना देख रही थी। हाथी ने चींटी से कहा मुझे बचा लो। चींटी ने कहा कि चिंता मत करो मै तुम्हें बचाने आ रही हूँ । यह कहकर चींटी पेड़ से कूद गयी और पानी में बहने लगी बहते-बहते वो हाथी के पास पहुंच गयी। थोड़ी देर बाद बारिस के रूकते ही पानी घट गया और हाथियों का बहना बन्द हो गया। सभी हाथी डूबने से बच गये, थोड़ी देर बाद चींटी ने हाथियों से कहा देखा मैंने तुम लोगों को कितनी मेहनत से बचाया है। यह सब सुनकर सभी हाथी जोर-जोर से हंसने लगे।
आदित्य कुमार
अपना घर, कानपुर 

गुरुवार, अक्तूबर 28

कहानी:- मेहनत का फल

मेहनत का फल

एक बार की बात है। एक गाँव में एक किसान रहता था ।वह बड़ा दयालु किस्म का आदमी था वह रोज जंगल में जाता और लकड़ी काटकर लाता और उससे जो बीस पच्चीस रूपये मिल जाते उसी से अपना गुजर बसर करता वह किसान के पास एक विस्वा खेत था वह बेचारा इतना गरीब था कि वह अपना चप्पल जूता भी नही खरीद सकता फिर वह उसके पास थोड़ी बहुत जमीन थी वह भी बंजर पड़ी थी । बंजर के कारण उसके खेत खेलिहान सब सूख गये थे। उसके पास पानी का कोई साधन नही था तो बेचारा वह क्या करता। उसके पास टूटी -फूटी झोपड़ी थी वह उसी में रहता था। एक दिन वह फिर जंगल में गया और उसने कडी़ मेहनत करके लकड़ी काट कर लाया, फ़िर वह बाजार गया और उसने दस हजार की लकड़ी बेच दी फिर उसने दो बैल और दो गाय खरीदी सात हजार रूपये की और खुद के लिए १००० रुपये के बढ़िया कपड़े लाया, और अपने गाय बैलों के लिये भूसा चारा आदि के लिये २००० रुपये रख लिए। वह खुशी से रहने लगा, तभी एक दिन बहुत जोर बारिश हुई, बारिश के कारण नदी, तालाब, खेत खलिहान सब भर गये, अब किसान को बहुत प्रशन्नता हुई। वह बैलों को लेकर अपना थोड़ी बहुत जो खेती थी उसे जोतने लगा, फिर अब उसके पास धन नही था, फिर वह लकड़ी काटने गया। उससे जो पैसा मिला उससे वह अपने खेत के लिये बीज ले आया, फिर वह उसे बो दिया और उसके पास जो गाय थी, वह उसको चारा खिलाता कुछ दिन बाद गाय को एक बछड़ा पैदा हुआ, और अब वह दूध बेचने लगा, फिर उसने सोंचा कि गांव में कोई दूध नही लेगा, और उसने सोचा दूध को कैसे बेचा जाये, उसके पास साइकिल तो नही थी। उसने गेहूं को काटा और उसे पछोर कर बाजार में बेचने चला गया, और उसे बेचकर अपने लिये एक साईकिल लाया। अब वह रोज शहर मे जाकर दूध बेचने लगा, दूध बेचने पर उसे ढेर सारे पैसे मिले, उस पैसों से उसने अपनी टूटी फूटी झोपड़ी बनवा ली। अब वह सुख व शांति पूर्वक रहने लगा। इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की इस दुनिया मे जो मनुष्य मेहनत करता है वही सफल होता है।
आदित्य कुमार
अपना घर, कानपुर 

बुधवार, अक्तूबर 27

कविता:- नेता जी का मुंह में मच्छर

नेता जी के मुंह में मच्छर
आज सुनी मैंने गजब ख़बर।
नेता के मुंह में अटक गया मच्छर॥
नेता जी भागे खांसते - खांसते।
दौड़े पतली गली के रस्ते॥
पहुँच गए डाक्टर घसीटे के पास।
उसने सोचा दिन है मेरा खास॥
तभी नेता जी टप से तब बोले
जल्दी से अपना मुंह खोले॥
मुंह के अन्दर मेरे मच्छर।
फंस गया है वो उसके अन्दर॥
पकड़ा डाक्टर ने चिमटे से मच्छर।
जोर लगाया उसने कसकर॥
निकल गया फ़िर गले से मच्छर।
फ़िर भी मच्छर रहा सिकंदर॥
डंक टूट गया गले के अन्दर
नेता जी फ़िर बन गए बन्दर॥
खांस - खांस कर हुए बेहाल।
याद आया उनको ननिहाल॥
आदित्य पाण्डेय

बुधवार, अक्तूबर 20

कविता : मरना ही हैं सरल

मरना ही हैं सरल
मुसाफिर चला हैं लेके अपने खाली हाथो को ,
तुम भी तो समझो मुसाफिर की इंसानियत को....
सफ़र हैं बहुत ही दूर,
पर उसकी ताकत हो चुकी हैं चूर....
मुसाफिर चला हैं अपना पेट भरने को,
पेट के वास्ते सभी को छोड़ा एस ज़माने को .....
किसी को छाया हैं अमीरी का नशा,
कंगाल वही हैं जो न देखे गरीबो की दशा....
मुसाफिर चाहे मारे चाहे भूखे ही तडपे ,
हर कोई उसको ही हदाकाए.......
पेट भरना बड़ा ही हैं मुश्किल,
इससे अच्छा मरना ही हैं सरल....
लेख़क आशीष कुमार

कविता: भालू भइया मंत्री बन गए .....

भालू भइया मंत्री बन गए

जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....
लोमड़ी एक दिन रोती आई,
शेर से अपनी बात बताई....
शेर ने पूछा क्या हो गया,
लोमड़ी बोली पूँछ कट गया....
शेर ने झट डाक्टर बुलवाया,
दौड़ के डाक्टर जल्दी आया....
डाक्टर थे भाई भालू लाला,
ढूंढ़ के फेविक्युक ले आया....
झट से उसके पूँछ में लगाई,
लोमड़ी रानी खूब चिल्लाई....
उसकी झट से पूँछ जुड गई,
डाक्टर भालू की चर्चा फ़ैल गई....
शेर राजा झूम के गाये,
लोमड़ी रानी खुशी से नाचे....
शेर राजा खुश हो गए,
भालू भइया मंत्री बन गए....
जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....
लेखक: मुकेश कुमार

मंगलवार, अक्तूबर 19

कविता:- आज का नेता

आज का नेता
कितना खराब नेता है भइया
ये तो बहुत घूसखोर है भइया
ये नियमो का उलंघन करते है भइया
इसे ऊँचे पद से हटाव भइया
नया नियम बनावो भइया
अपना भारत के चमकाओ भइया
कितना खराब नेता है भइया
ये तो बहुत घूसखोर है भइया
ये देश के लिए कुछ नही करते भइया
देश को बेच के खा जाते भइया
विकास के लिए पैसा आता है भइया
पर गाँव तक आते - आते
नेता लोग खा जाते भइया
कितना खराब नेता है भइया
ये तो बहुत घूसखोर है भइया
लेखक : सागर कुमार

कविता:- मटका

मटका
मटका अपना गोल - गोल
अन्दर से है पोल - पोल
मिटटी का ये बना हुआ है
गोल - गोल ये बना हुआ है
जिसके घर में मटका होता है
ठंढा पानी पीता है
मटका जल्दी फूट जाता है
मटका अपना गोल - गोल
अन्दर से है पोल - पोल
लेखक : ज्ञान

सोमवार, अक्तूबर 18

कविता :सही हमें नहीं पता

सही हमें नहीं पता
आसमान हैं नीला नीला ,
कपडे पहने पीले पीले....
पानी बरसे होले होले,
असमान हैं क्या .....
हमें नहीं हैं पता ,
पानी क्यों बरता हैं....
बिजली क्यों गरजती हैं,
असमान हैं नीला क्यों....
यह हमें नहीं पता हैं,
यह हमारी मजबूरी हैं....
दूसरे हमें सताते हैं,
जो कोई भी पूछता हैं....
तो गलत बताते हैं ,
सही उत्तर हम नहीं जानते हैं....
असमान हैं नीला नीला,
कपडे पहने पीले पीले ....
लेख़क : मुकेश कुमार कक्षा

कहानी:- सोनपरी


सोनपरी
एक बार की बात हैएक घने जंगल में एक परी रहती थी, उसका नाम सोनपरी थासोनपरी बहुत ही सीधी और शांत स्वभाव की थी, लेकिन गाँव वाले उससे बहुँत डरते थेगाँव वाले सोचते थे कि कंही वो हमारे बच्चो को खा जायउस गाँव में एक बहुँत ही सीधा लड़का रहता था, लेकिन गाँव वाले उससे बोलते नही थेलड़का बहुत दुखी रहता था, एक दिन वो रात को जंगल में सोनपरी के पास गया और बोला कि सोनपरी तुम मुझको खा लो, सोनपरी बोली क्यो लड़का बोला क्योकि गांव वाले मुझसे बात नही करते हैसोनपरी बोली मै तो किसी को नही खाती हूँ मै तुम्हारी मदद करुँगी , गाँव वालो को मै समझा दूंगीलड़का वापस गाँव में गयाएक दिन गाँव में कंही से एक पागल हाथी गया और गाँव में उधम मचाने लगा गाँव वाले जान बचाकर भागने लगे तभी सोनपरी गाँव में आई हाथी को मार डाला फ़िर गाँव वालो से बोली मै आप लोगो को कोई कष्ट नही दूंगीअब आप लोग सभी के साथ सुख से जिए और उस बच्चे को साथ लेकर बोली कि आप सभ इस से बात करेंगे तो मै हमेशा आपकी मदद करुँगी इतना कहकर परी उड़ गई
लेखक : ज्ञान

कविता : मजदूर

मजदूर
मजदूर बेचारे करते काम
दिन और रात सुबह और शाम
करते - करते ही वह थक जाते
अपना साहस कभी नही छोड़ते
सदा आगे बढ़ते रहते
कभी नही वे पीछे हटते
दिन और रात करते काम
लेते रहते हरि का नाम
मजदूर बेचारे करते काम
दिन और रात सुबह और शाम
लेखक : ज्ञान

रविवार, अक्तूबर 17

कविता :बन्दर की बारात

बन्दर की बारात
बन्दर जी की आज बारात
हाथी भालू शेर और चीते
नाच रहे है एक साथ में
गा रहे है एक संग में
उन चारो ने धूम मचा दी
बारात को भी खूब सजा दी
बन्दर जी ने धूम मचा दी
बंदरिया को खूब नचा दी
बन्दर की बारात ला दी
बंदरिया से उनको मिलवा दी
सोनू कुमार
कक्षा ७, अपना घर

शनिवार, अक्तूबर 16

कविता : वो हामिद कहाँ है

वो हामिद कहाँ है

मेला वही है ,
ईद वही है ....
चूल्हा वही है ,
दादी वही है ....
आज भी अगुंलियाँ ,
जलती दादी की हैं ....
आखों में उसके ,
समंदर भरा है ....
मगर आज अपना ,
वो हामिद कहाँ है ....
इस भीड़ में ,
वो खोया कहाँ है ....

लेख़क : महेश

शुक्रवार, अक्तूबर 15

कविता : हाथी

हाथी
हाथी पों पों करता है
कभी किसी की नहीं सुनता है
अपनी धुन में चलता है
खूब मजे से रहता है
हाथी पों पों करता है
कान उसके बड़े बड़े
सूप जैसे कितने अच्छे
हाथी है कितने अच्छे
उसके दांत है लंबे लंबे कविता
मानस
अपना घर, कक्षा ५

ताजी खबर

ताजी खबर
आज की ताजी खबर ,
उल्लू चोंच दबाकर भागा.....
नेता जी को गुस्सा आया,
ली फिर मदद पुलिस की....
नेता जी ने लड़ा मुक़दमा,
गये बेचारे हार.....
आज की ताजी खबर,
उल्लू चोंच दबा कर भागा....
लेख़क -अनुज कुमार
कक्षा-
स्कूल -आर.के .मिशन स्कूल कानपुर