सोमवार, जनवरी 31

हमें भी ख्व़ाब आते हैं

थकी हुई सी पलकों पे भी ख्व़ाब आते हैं,
सहर होने को है ये शोर बेहिसाब आते हैं।

हों मुफलिसी ग़रीबी के दर्द लाखों फिर भी,
हँस के जीने के तरीके लाजवाब आते हैं।

जर्ज़र है दर-ओ-दीवार घर की तो क्या हुआ,
हमारे ख़यालों में गुम्बद और मेहराब आते हैं।

हम भूलते हैं राह जो कहीं भी सफर में,
तो राह बताने चाँद और आफ़ताब आते हैं।

थक हार के जब कहते हैं कि कुछ ना बदलेगा,
हवाओं के साथ तभी नज़्म-ए-इन्क़लाब आते हैं।

.... मोहम्मद ज़फ़र

रविवार, जनवरी 30

बापू


बापू की राह पर चलना

बापू की राह पर चलना,
बहुत मुश्किल लगता है...

किसी की गाली का जवाब,
चुप रह कर देना बहुत मुश्किल लगता है...

किसी के थप्पड़ का जवाब,
दूसरा गाल आगे कर के देना बहुत मुश्किल लगता है...

पर मेरे दोस्त सोचो तो जरा बापू की रह पर चलना,
नामुमकिन तो नहीं लगता है ...

......दीन दयाल

शुक्रवार, जनवरी 28

सलाम साथियों

सलाम साथियों
जैसा की आप सभी जानते है की बचपन के रंग के द्वारा हम अपने मन की बात आप सभी तक पहचानें की कोशिश करते है इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए, बचपन के रंग ने अपनी एक पत्रिका २६ जनवरी से शुरु की है. पत्रिका निकालने की सोच पनकी पड़ाव के अपना स्कूल से शुरु हुई और वहीं से इसकी शुरुवात हुई.
नीचे कुछ फोटो है आप जरुर देखे.

 

...............धन्यवाद



गुरुवार, जनवरी 20

कभी तो हम जीतेंगे...

कब तक अँधेरे से डर कर चुप रहेंगे,
कभी न कभी को सामना करना ही है...
तो क्यों न आज ही कोई कदम उठाने की सोचे,
और कोशिश करे की एक बार मुकाबला तो हो...
हर जीत तो लगी ही रहती है,
कभी तो हम जीतेंगे...

.................................दीन दयाल सिंह

बच्चे मन के सच्चे


शनिवार, जनवरी 15

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

..........................................हरिवंशराय बच्चन

सूरज का चित्र

रविवार, जनवरी 9

ताजमहल को दुनिया के अजूबों में क्यों शामिल किया जाता है...?"

अध्यापक ने कक्षा से सवाल किया,
 
"क्या तुम लोग बता सकते हो, ताजमहल को दुनिया


के अजूबों में क्यों शामिल किया जाता है...?"


रोहन ने हमेशा की तरह तपाक से जवाब दिया,


"सर, ताजमहल को अजूबा इसलिए कहा जाता है,  


क्योंकि शाहजहां ने इसे किसी भी बैंक से

लोन लिए बिना बनवा दिया था..."

 
    
शायद आज की महंगाई के आगे ये बात बिल्कुल सही है .........
आप क्या कहते है....................?

..............ये रचना मैंने थोडा मुस्कुरा करा देखो ब्लॉग से लिया है 

कुंती का चित्र

शनिवार, जनवरी 8

विनीत का चित्र

कविता : मेरी बत्तख

मेरी बत्तख
पंख सुनहरे चोच है पीली,
करती है ये मनमानी...
मेरी बत्तख निराली कितनी.
केवल पीती पानी है...
लेखक : मैना खातून 
अपना स्कूल

सरवन का चित्र

शुक्रवार, जनवरी 7

हमारा समाज

हमारा समाज 

भाषण की है खेतियाँ
कागज पे उगता अनाज
डकैती, मरण, अपहरण
अपने हैं रस्मो रिवाज
कोढ में खाज
हमारा समाज
हमारा समाज 
........ये पंकितियाँ मैंने "यह अंदर की बात" नामक पुस्तक से ली है।

बुधवार, जनवरी 5

स्वर्ग से विदाई

स्वर्ग से विदाई

भाईयों और बहनों!
अब ये आलिशान इमारत
बन कर तैयार हो गयी है.
अब आप यहाँ से जा सकते हैं.
अपनी भरपूर ताक़त लगाकर
आपने ज़मीन काटी
गहरी नींव डाली,
मिटटी के नीचे दब भी गए.
आपके कई साथी.
मगर आपने हिम्मत से काम लिया
पत्थर और इरादे से,
संकल्प और लोहे से,
बालू, कल्पना और सीमेंट से,
ईंट दर ईंट आपने
अटूट बुलंदी की दीवार खड़ी की.
छत ऐसी कि हाथ बढाकर,
आसमान छुआ जा सके,
बादलों से बात की जा सके.
खिड़कियाँ क्षितिज की थाह लेने वाली,
आँखों जैसी,
दरवाजे, शानदार स्वागत!
अपने घुटनों और बाजुओं और
बरौनियों के बल पर
सैकडों साल टिकी रहने वाली
यह जीती-जागती ईमारत तैयार की
अब आपने हरा भरा लान
फूलों का बागीचा
झरना और ताल भी बना दिया है
कमरे कमरे में गलीचा
और कदम कदम पर
रंग-बिरंगी रौशनी फैला दी है
गर्मी में ठंडक और ठण्ड में
गुनगुनी गर्मी का इंतजाम कर दिया है
संगीत और न्रत्य के
साज़ सामान
सही जगह पर रख दिए हैं
अलगनियां प्यालियाँ
गिलास और बोतलें
सज़ा दी हैं
कम शब्दों में कहें तो
सुख सुविधा और आजादी का
एक सुरक्षित इलाका
एक झिलमिलाता स्वर्ग
रच दिया है
इस मेहनत
और इस लगन के लिए
आपकी बहुत धन्यवाद
अब आप यहाँ से जा सकते हैं.
यह मत पूछिए की कहाँ जाए
जहाँ चाहे वहां जाएँ
फिलहाल उधर अँधेरे में
कटी ज़मीन पर
जो झोपडे डाल रखें हैं
उन्हें भी खाली कर दें
फिर जहाँ चाहे वहां जाएँ.
आप आज़ाद हैं,
हमारी जिम्मेदारी ख़तम हुई
अब एक मिनट के लिए भी
आपका यहाँ ठहरना ठीक नहीं
महामहिम आने वाले हैं
विदेशी मेहमानों के साथ
आने वाली हैं अप्सराएँ
और अफसरान
पश्चिमी धुनों पर शुरू होने वाला है
उन्मादक न्रत्य
जाम झलकने वाला है
भला यहाँ आपकी
क्या ज़रुरत हो सकती है.
और वह आपको देखकर क्या सोचेंगे
गंदे कपडे,
धुल से सने शरीर
ठीक से बोलने और हाथ हिलाने
और सर झुकाने का भी शऊर नहीं
उनकी रुचि और उम्मीद को
कितना धक्का लगेगा
और हमारी कितनी तौहीन होगी
मान लिया कि इमारत की
ये शानदार बुलंदी हासिल करने में
आपने हड्डियाँ लगा दीं
खून पसीना एक कर दिया
लेकिन इसके एवज में
मजदूरी दी जा चुकी है
अब आपको क्या चाहिए?
आप यहाँ ताल नहीं रहे हैं
आपके चेहरे के भाव भी बदल रहे हैं
शायद अपनी इस विशाल
और खूबसूरत रचना से
आपको मोह हो गया है
इसे छोड़कर जाने में दुःख हो रहा है
ऐसा हो सकता है
मगर इसका मतलब यह तो नहीं
कि आप जो कुछ भी अपने हाथ से
बनायेंगे,
वह सब आपका हो जायेगा
इस तरह तो ये सारी दुनिया
आपकी होती
फिर हम मालिक लोग कहाँ जाते
याद रखिये
मालिक मालिक होता है
मजदूर मजदूर
आपको काम करना है
हमे उसका फल भोगना है
आपको स्वर्ग बनाना है
हमे उसमें विहार करना है
अगर ऐसा सोचते हैं
कि आपको अपने काम का
पूरा फल मिलना चाहिए
तो हो सकता है
कि पिछले जन्म के आपके काम
अभावों के नरक में
ले जा रहे हों
विश्वास कीजिये
धर्म के सिवा कोई रास्ता नहीं
अब आप यहाँ से जा सकते हैं
क्या आप यहाँ से जाना ही
नहीं चाहते ?
यहीं रहना चाहते हैं,
इस आलिशान इमारत में
इन गलीचों पर पाव रखना चाहते हैं
ओह! ये तो लालच की हद है
सरासर अन्याय है
कानून और व्यवस्था पर
सीधा हमला है
दूसरों की मिलकियत पर
कब्जा करने
और दुनिया को उलट-पुलट देने का
सबसे बुनियादी अपराध है
हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे
देखिये ये भाईचारे का मसला नहीं हैं
इंसानीयत का भी नहीं
यह तो लडाई का
जीने या मरने का मसला है
हालाँकि हम खून खराबा नहीं चाहते
हम अमन चैन
सुख-सुविधा पसंद करते हैं
लेकिन आप मजबूर करेंगे
तो हमे कानून का सहारा लेने पडेगा
पुलिस और ज़रुरत पड़ी तो
फौज बुलानी होगी
हम कुचल देंगे
अपने हाथों गडे
इस स्वर्ग में रहने की
आपकी इच्छा भी कुचल देंगे
वर्ना जाइए
टूटते जोडों, उजाड़ आँखों की
आँधियों, अंधेरों और सिसकियों की
मृत्यु गुलामी
और अभावों की अपनी
बेदरोदीवार दुनिया में
चुपचाप
वापिस
चले जाइए!
.........गोरख पाण्डेय

मंहगाई का रूप

मंगलवार, जनवरी 4

६ दिसम्बर १९९२

राम वनवास से लौटकर जब घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक्से दीवानगी जो आँगन में देखा होगा
६ दिसम्बर को राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर आए

पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
की नज़र आए वहाँ खून के धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरो से उठे
राजधानी की फजा आई नहीं मुझे रास
६ दिसम्बर को मिला मुझे दूसरा वनवास

..................आज़मी

जोगीरा सारा रा... ..रा.....

जोगीरा सारा रा... ..रा.....
जोगीरा सारा रा...रा.....
विश्व बैंक के गेट पे खड़ा है एक इंसान
हमने पूछा कौन तो भईया बोला हिन्दुस्तान
कटोरा लिए खड़ा है
"होए" ,
कटोरा लिए खड़ा है
"होए"
कटोरा लिए खड़ा है
"होए"
कटोरा लिए खड़ा है
बोल...
जोगीरा सारा रा... रा.....
"होए"
जोगीरा सारा रा... रा.....
नई शिक्षा नीतका नया बना मजलूम
पैसे वाले खूब पढ़ेगे जाकर देहरादून
बाकि सब भैस चराए
"होए"
बाकि सब भैस चराए
"होए"
बाकि सब भैस चराए
"होए"
बाकि सब भैस चराए
बोल...
जोगीरा सारा रा... रा.....
"होए"
जोगीरा सारा रा... रा.....
संसद और विधान सभा में चलते जूता चप्पल
नेता जी अब डाकू बन गए देश बन गया चम्बल
सभी को सहना होगा...
"होए"
सभी को सहना होगा...
"होए"
सभी को सहना होगा...
"होए"
सभी को सहना होगा... "होए"
बोल...
जोगीरा सारा रा... रा.....
"होए"
जोगीरा सारा रा... रा.....
संसद की इस रेल का हो गया चक्का जाम
चल चल भइया भाग चले कहीं गंगा जी के धाम
की पंडा गिरी करेगे
"होए"
की पंडा गिरी करेगे
"होए"
की पंडा गिरी करेगे
"होए"
की पंडा गिरी करेगे
बोल...
जोगीरा सारा रा... रा.....
"होए"
जोगीरा सारा रा... रा.....
वकील साहब ने जज से पूछा अपनी कलम दिखाकर
अपराधी गर दोषी हो तो जल्दी से रिहा कर
क्यों की ................
सीएम का साला लगता
"होए"
सीएम का साला लगता
"होए"
सीएम का साला लगता
"होए"
सीएम का साला लगता
बोल...
जोगीरा सारा रा... रा.....
"होए"
जोगीरा सारा रा... रा.....
जोगीरा सारा रा... ॥रा.....
विश्व बैंक के गेट पे खड़ा है एक इंसान
हमने पूछा कौन तो भईया बोला हिन्दुस्तान
कटोरा लिए खड़ा है
"होए" ,
कटोरा लिए खड़ा है
"होए" कटोरा लिए खड़ा है
"होए"
कटोरा लिए खड़ा है
बोल...
जोगीरा सारा रा... रा.....
"होए"
जोगीरा सारा रा... रा.....

सोमवार, जनवरी 3

शीबू का चित्र

साधो देखो रे जग बौराना रे साधो

साधो देखो रे जग बौराना रे साधो ।
देखो रे जग बौराना ॥
साची कहो तो मारन लागे,
झूठी कहो पतियाना
हिंदू कहत है राम हमारा,
मुस्लमान रहमाना
आपस में दोऊ लडै मरत हैं
मरम न कोई जाना ॥
घर घर मंतर देत फिरत हैं,
माया के अभिमाना
पीपर पत्थर पूजन लागे,
तीरथ गए भुलाना ॥
देखो रे जग बौराना....
माला फेरे टोपी पहिरे,
छाप तिलक अनुमाना
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
ये सब भरम भुलाना ॥
देखो रे जग बौराना............
...................................................................................................................................

दुर्गा का चित्र

भूख

भूख की कविता

भूख पर नहीं लिखी जा सकती कोई सुंदर सी कविता
दरअसल बेहद डरावना है भूख का चेहरा 
हम में से कई लोग भूखे रहते हैं कई बार 
इसलिए की सुधर सखे सेहत 
लेकिन
जिन लोगों की सेहत
बिलबिलाती भूख से नहीं रहती दुरुस्त
 सोचिये जारा एक पल, कितना भयानक होता है
भूख का चेहरा 

...........ये कविता मैंने "भूख का मानचित्र" नमक किताब से ली है

रविवार, जनवरी 2

क्या ये सभी लाइन एक दुसरे के समान्तर है या नहीं?


दुर्गा का चित्र

कविता : मिट्ठू राम

मिट्ठू राम 
करता नहीं जरा सा काम,
कुतर-कुतर कर खाता है...
सुबह से हो जाती है शाम,
मेरा प्यारा मिट्ठू राम...
लेखक : समीरन खातून 
अपना स्कूल