शुक्रवार, अप्रैल 27

स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,

स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................

हर आगन का बुढा सूरज, परचम परचम दहक उठा,
काल सिंधु के ज्वार परिश्रम, के फूलो से महक उठा।
नाश और निर्माण जवानी की निश्छल किलकारी है,
कल का गीत लिए होठों पर आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................


स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................


जंजीरों से शुब्ध युगों तक प्रणय गीत से रणभेरी ,
मुक्ति प्रिया की पग ध्वनी लेकर घर घर लगा रही फेरी।
हेर नारे में महाकाव्य के स्राजन्कर्म की बारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................


स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................
.....महेशवर
संकलन: समर तो शेष है....

गुरुवार, अप्रैल 26

चिंता रहती है....

वीरों को - आन की
नाविक को - तूफ़ान की
मुसाफिर को - सामान की
भिखारी को - दान की
ऋषि को - वरदान की
कंजूस को - मेहमान की
गायक को - तान की
छात्र को - इम्तेहान की
पंक्षी को - उड़ान की
प्रोफ़ेसर को - बखान की
आमिर को - शान की
किसान को - लगान की
नेता को - मतदान की
भगवान को - जहान की
शराबी को - शुरापान की
ड्राईवर को - चालान की
कायर को - जान की
कमज़ोर को - बलवान की
व्यापारी को - नुकशान की
माँ-बाप को - संतान की 

---  शैलेन्द्र शील पाठक

बुधवार, अप्रैल 18

कविता - सब कुछ बदल गया....

ये दुनिया बदल गयी,
ये जहाँ बदल गया ।
आज के इस संसार में,
ये इन्सान ही बदल गया ।

आज नेताओं और लोगों के चरित्र,
बदल गए ।
भ्रष्टाचारी इस देश में,
गरीबी के मायने बदल गए ।

नेता वोटों के खातिर,
जाने क्या क्या वादे कर गए ।
वादों को भी न पूरा किया,
पर अपनी झोली ये भर ले गए ।   

कवि : धर्मेन्द्र कुमार