शनिवार, अप्रैल 30

बिठूर यात्रा - 2

यात्रा पर हम सभी ने बिठूर के बारे में कुछ नई बातें जानी आप भी जानिए.

कृपया फ्लिम प्ले करके देखे. 


शुक्रवार, अप्रैल 29

विज्ञान ने हमको क्या दिया

विज्ञान ने हमको क्या दिया, ये पोस्टर आपको शायद एक बार फिर ये बात सोचने पर मजबूर करे...........


ये पोस्टर हमारे साथी खालिद भाई ने बनाया है.

बुधवार, अप्रैल 27

मेरा चित्र, मेरी कल्पना











बिठूर यात्रा - 1

सभी को बचपन के रंग का सलाम

हम सभी लोगों ने 26 अप्रैल को बिठूर घुमाने का मन बनाया, और 26 अप्रैल को बिठूर घुमाने के लिए निकल पड़े. हमारी इस यात्रा में कुल 19 लोग थे, जिसमें 16 बच्चें, मैं और के.एम. भाई और ड्राईवर भाई. हम लोगों की यात्रा आनंद भट्ठे से १ बजे निकली और फिर हम लोग मंधना पहुचें और करीब 1:45 पर बिठूर पहुँच गए. सबसे पहले हम लोग ब्रम्हाव्रत घाट पहुंचे और हम सभी ने गंगा नदी को देखा और उसके पानी को छुआ और पानी के साथ मजे किये. बच्चें गंगा नदी को देख कर काफी खुश थे.  उसके बाद हम सभी लोग पत्थर घाट गए और वहां पर बने शिव मंदिर को देखा, शिव मंदिर का सुन्दरीकरण का काम चल रहा था.

यात्रा की कुछ तस्वीरें......



 










आगे की यात्रा जारी रहेग........




शनिवार, अप्रैल 23

लगता है मै आदमी हूँ..................


लगता है मै आदमी हूँ
मेरे दो हाथ दो पैर है
एक सर और एक पेट है
लगता है मै आदमी हूँ ....
पेट को देखने के लिए
मै सिर को झुकता हूँ,
पेट को देखने के लिए
काम पर जाता हूँ
और बहस करता हूँ रोटी के लिए......
पर यंहा भी,
पेट को देखने के लिए
सिर को झुकता हूँ रोज़....
सुबह झुकाता हूँ, शाम झुकाता हूँ
शाम को पेट गढ्ढा नजर आता है...
एक आग सी दिखाई देती है
आग को आग से बुझाता हूँ
लगता है मै आदमी हूँ.....
लगता है वह भी आदमी है ???
उसके भी दो हाथ दो पैर एक सिर
और एक पेट है....
उसे काम पर नही जाना होता
उसे रेट पर बहस नही करना होता
उसे पेट को देखने के लिए
सिर को झुकाना नही होता
क्यों की पेट ख़ुद-बा-ख़ुद सिर को
देखता है...
लगता है की मै आदमी हूँ....

.....किसान का व्यास

बाल कविता : एक मकान में चार दुकान।

एक मकान में चार दुकान।
बनते थे सब में पकवान।।
चारो दुकानों में मोटे हलवाई।
करते रहते दिन रात लड़ाई॥
लड़ाई में क्या होते थे मुद्दे।
दुकान में सौदे हो जाते थे मद्दे ॥
चारो दुकानों में सन्डे को होता था अवकाश।
उस दिन चारों हलवाई नहीं करते थे बकवास॥
एक मकान में चार दुकान।
बनते थे सब में पकवान॥

लेखक : ज्ञान कुमार
कक्षा : सात