सोमवार, नवंबर 29

कविता: भालू भइया मंत्री बन गए .....

भालू भइया मंत्री बन गए


जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....
लोमड़ी एक दिन रोती आई,
शेर से अपनी बात बताई....
शेर ने पूछा क्या हो गया,
लोमड़ी बोली पूँछ कट गया....
शेर ने झट डाक्टर बुलवाया,
दौड़ के डाक्टर जल्दी आया....
डाक्टर थे भाई भालू लाला,
ढूंढ़ के फेविक्युक ले आया....
झट से उसके पूँछ में लगाई,
लोमड़ी रानी खूब चिल्लाई....
उसकी झट से पूँछ जुड गई,
डाक्टर भालू की चर्चा फ़ैल गई....
शेर राजा झूम के गाये,
लोमड़ी रानी खुशी से नाचे....
शेर राजा खुश हो गए,
भालू भइया मंत्री बन गए....
जंगलवासी सुनो एक ख़बर,
करना ना कोई अगर - मगर....
लेखक: मुकेश कुमार

शनिवार, नवंबर 27

कविता: लालू भइया ........

लालू भइया ........


लालू भइया बड़े दयालू,
खाते जाते हरदम आलू....
घर में पहुंचे बन गए भालू,
इसलिए हम कहते लालू....
लालू भइया बड़े दयालू,
उनके दोस्त है मोटे कालू....
लालू जम के खाते अंडा,

खूब लहराते देश का झंडा....
लालू भइया बहुँत है छोटे,
इसीलिए दिखते है मोटे. ..
लालू भइया बड़े है भोले,
रखते मुंह में पान के गोले....
लालू भइया बड़े दयालू,
दान में हरदम देते आलू....
लालू जब भी खाते आलू,
उनके घर में आता भालू....

लेखक: मुकेश कुमार

बुधवार, नवंबर 24

कहानी : हरहर सिंह की तरकीब


हरहर सिंह की तरकीब
प्राचीन काल की बात है की एक राजा किसी नगर में राज्य करता था वह बड़ा ही निर्दयी और क्रूर और हरदम दुखी रहने वाला राजा था वह लोगो को हमेशा सताया और डराया करता था वह सभी लोगो से अपने खेतों में काम करवाता था और काम के बदले जो भी पैसा तय करता उतने देकर उससे बहुत ही काम पैसे देता था, मजदूर जब अपने पैसे मांगते थे तो उनकी पिटाई करता और उन्हें जेल में डाल देता इस तरह से राजा नगर के लोगों को सताया करता था उसी नगर में हरहर सिंह नाम काल एक नौजवान रहता था उसकी उम्र लगभग २८ वर्ष थी, वह कुछ पढ़ा लिखा था और बहुत समझदार भी था जब उसे पता चला की राजा नगर के वासियों के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है, तो हर हर सिंह ने लोगों को बुलाकर एक बैठक की और उन्हें समझाया कि हम लोगों को स्वतन्त्रता पूर्वक जीवन जीने का अधिकार है और हम लोगो से कोई जबरदस्ती करके काम नही ले सकता है मगर हम लोगों को अपने अधिकार लेने के लिए एक साथ संगठित और शिक्षित होकर संघर्ष कारन पड़ेगा तब हमें अपना अधिकार मिलेगा हमें अपना अधिकार तब मिलेगा सब हम सभी राजा के पास चलाकर इस अन्याय का विरोध करे और हम स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जीने का अधिकार मांगे बैठक के बाद कुछ लोगो राजा के पास जाकर विरोध करने के लिए तैयार ही गए, मगर कुछ लोगो राजा के डर से इस विरोध में शामिल नही हो रहे थे हर हर सिंह ने उन लोगों को फ़िर से खूब समझाया कि राजा तुम्हारा कुछ नही कर सकता है करेगा, इसलिए आप सभी इस संघर्ष में शामिल हो... ये तुम्हारा अधिकार है अगर आप नहीं लोगो तो वो कौन लेगा, तुम्हे अपना अधिकार लेने के लिए राजा का विरोध करना चाहिए, अगर नही करोगे तो तुम्हे अधिकार नही मिलने वाला है इतन कहते ही सभी नगर वासी संघर्ष के लिए तैयार हो गए औए अगले दिन राजा के राजा के दरबार में विरोध करने पहुँच गए और अपने अधिकार के मांग को लेकर नारे लगाने लगे राजा सभी नगरवासियों को इकठ्ठा देख कर डर गया वो सोचने लगा कि कंही सभी मिलकर हमें पीटने लगे राजा सभी से बातचीत करने लगा और उसने नगरवासियों से कहा कि मै ग़लत था आप सबसे अपनी गलतियों के लिए माफ़ी चाहता हूँ आज से आप सभी अपने मर्जी से काम का समय तय करेंगे और जो भी मजदूरी आप सभी मिल कर तय करेंगे वो मजदूरी आपको पूरी कि पूरी मिलेगी और राजा ने उनके सभी अधिकार दिए नगर के लोगो इस जीत से बहुँत ही खुश हुए नगरवासियों ने हरहर सिंह को इस जीत के लिए धन्यवाद् दिया और खूब बधाइयां दी हरहर सिंह कि तरकीब देखकर राजा बहुँत ही प्रभावित हुआ राज ने भी निर्दयता, क्रूरता, सताना और डरना छोड़कर लोगो के साथ अच्छा ब्यवहार करने लगा राजा अब सभी के साथ खेतो में जाकर ख़ुद काम करने लगा सभी लोगो के साथ मिलकर उनके साथ प्रेमपूर्वक जीने लगा इस प्रकर अब नगर के सभी लोग हरहर सिंह के साथ खुशी से रहने लगे साथ में अब राजा भी बहुत खुश रहने लगा....
लेखक : आदित्य कुमार

मंगलवार, नवंबर 23

कविता: बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें

बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें


हमको तो सब कुछ याद है,
अब तो मार खायेंगे...
जो कुछ याद नही है,
उसे तो बिल्कुल रट लेंगे...
अब होने को है पेपर उसमे लिख देंगे,
जो भी देंगे उसको हल कर देंगे...
ये सब याद हुआ है डंडे के बल पे,
टीचर तो बैठे रहते कुर्सी पे...
हाथ में हरदम ले कर डंडे,
मार से रोज टूटे कितने डंडे...
भोले भाले और मुस्काते सारे बच्चे आते है,
रात को रटते सुबह भूल ही जाते है...
डंडे खाते फिर याद करते,
रोते रोते घर को जाते....
डंडे के बल पर हम कब तक पढ़ पाएंगे,
क्या कोई अब प्यारे टीचर आयेंगे....
बिन मारे क्या हम नही पढ़ पाएंगे,
बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगे....
लेखक: अशोक कुमार

रविवार, नवंबर 21

भाइयों और बहनों मेरी कविता तो सुनते जाओ

कविता: जंगल में घुस गई एक बकरी

जंगल में घुस गई एक बकरी


सुनो सुनो एक खुशखबरी,
घुस गई जंगल में एक बकरी....
शेर को ये जब संदेशा आया,
उसके समझ में कुछ आया....
डर से हालत हो गई पतली,
शेर को आने लग गई मितली....
तभी एक बिल्लौटा आया,
शेर को एक तरकीब बताया....
शेर को बाते समझ में आई,
उसने झट से मीटिंग बुलाई....
बन्दर हाथी भालू आए,
गदहा घोड़ा मिलकर गाये....
सबने मिलकर सोच लगाई,
बन्दर की बुद्धि काम में आई....
बन्दर बोला सुनो रे भाई,
बकरी से क्या डरना भाई....
बकरी खाती घास और दाना,
इसमें अपना क्या है जाना....
शेर की जान तब जान में आई,
सबने जंगल में खुशी मनाई....

लेखक: मुकेश कुमार

शुक्रवार, नवंबर 19

कविता: चूहे राजा की रानी

चूहे राजा की रानी


एक चूहे की तीन रानी,
तीनों रानी बड़ी सयानी ...
एक थी कानी पर कोयल जैसी बाणी,
बाते करती ऐसी जैसी सबकी हो नानी...
एक थी लगडी सर पर डाले पगड़ी,
हट्टी -कट्टी और थी मोटी तगड़ी...
एक थी सीधी -साधी प्यारी सी,
राजा को लगती राजकुमारी सी...
दोनों रानी इस बात से चिढ़ती थी,
राज के कान को भरती थी...
एक दिन दोनों राजा के उपर गिर गई,
राजा की पूछ उनके वजन से दब गई...
कानी लगडी का वजन था ज्यादा,
चूहे राजा को याद आ गए दादा ...
दर्द ने राजा के गुस्से को भड़काया,
राजा ने रानी को घर से मार भगाया...
लेखक: आदित्य कुमार

गुरुवार, नवंबर 18

बच्चों को कोचिंग पढने के लिए मजबूर करते अध्यापक


बच्चों को कोचिंग पढने के लिए मजबूर करते अध्यापक

कक्षा सात की बात है| हम सभी लोग उस समय पहली बार किसी सरकारी स्कूल में गए थे, इससे पहले हम सब कभी किसी सरकारी स्कूल में नहीं गए थे | उस स्कूल के अध्यापकों के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं थी | जैसे ही हम लोग अपनी - अपनी कक्षा में गए, वैसे ही कुछ लड़के हम लोगों के पास मिलने आये और बातचीत करने लगे और अध्यापकों के मारने के विषय में बताने लगे, पर हम लोगों को उन लड़कों की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था | कुछ समय के बाद पढाई शुरु हुई, गणित के अध्यापक गणित के सवाल बोर्ड में लगवा रहे थे कि एक लड़के ने अध्यापक जी से पूंछ लिया कि सर ये सवाल कैसे लगाया है ? फिर से बता दीजिये ताकि मुझे समझ में जाये | अध्यापक जी ने उसे अपने पास बुलाया और उसे दो थप्पड़ मारे और उससे कहने लगे कि ज्यादा समझना है तो कोचिंग में पढ़ने आना समझे , और कहा कि चुप - चाप जाकर अपनी सीट में बैठ जाओ | तब जाकर मुझे उन लड़कों की बातों पर यकीन हुआ कि वाकई में यह स्कूल एक डेंजर स्कूल है | मन में ये भी सवाल उठता है कि सरकारी मोटी वेतन पाने वाले ये अध्यापकों का कब पेट भरेगा ? सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले हम बच्चों का ये शोषण करना कब बंद करेंगे। . हम जैसे गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा, इन सरकारी स्कूलों में क्या कभी मिल सकेगी .......


आदित्य कुमार

कविता = मेरी कविता सुन लो भईया

सोमवार, नवंबर 15

कविता: कंप्यूटर

कंप्यूटर

कंप्यूटर है ये कितना अच्छा,
चलाता है इसको बच्चा बच्चा...
कंप्यूटर होते है बहुँत प्रकार,
अलग अलग होते है इनके आकार...
बहुँत सारा होता है डाटा स्टोर,
करता नही है ये शोर...
छोटा सा होता है माऊस एक,
जो करता है काम अनेक...
कंप्यूटर है ये कितना अच्छा,
चलाता है इसको बच्चा बच्चा...
 
छोटा सा होता है माऊस एक, 
जो करता है काम अनेक...
लेखक: धर्मेन्द्र कुमार

कविता: थाली और गिलास

थाली और गिलास


एक थी थाली एक था गिलास,
खाने में मिलते हरदम साथ...
हर घर में वे रहते साथ,
एक दूजे से करते बात...
एक दिन थाली की आई बारात,
चम्मच कटोरी जमके नाचे साथ...
दूल्हा बन ठुमके थे गिलास,
दोनों की शादी हो गई साथ...
एक थी थाली एक था गिलास,
खाने में मिलते हरदम साथ
....
लेखक: जमुना कुमार

कविता: गुरु जी की मार

गुरु जी की मार


गुरु जी हमारे कितने प्यारे,
हरदम पाठ पढाते प्यारे...
हम भी पढ़ते जाते सारे,
याद हमको होते प्यारे...
कक्षा में जब गुरु जी बोले,
पाठ सुनाओ बेटा भोले...
हम तो भइया गए भूल,
सोचा क्यो आए स्कूल...
गुरु जी को गुस्सा आया,
खूब पड़े फ़िर मुझको रूल...
याद गई मेरी नानी,
ख़त्म हुई अब मेरी कहानी...
लेखक :चंदन कुमार

रविवार, नवंबर 14

कविता: पापा और बेटा

पापा और बेटा


पापा कहते है बेटा,
तुम भी पढ़ने जाया करो...
पढ़ लिख कर अच्छा काम करोगे,
जग में अपना नाम करोगे...
पापा कहते है बेटा,
तुम भी पढ़ने जाया करो...
पापा ने पूछा एक सवाल,
बेटा बोलो मेरे कमाल....
तुम कौन सा ऐसा काम करोगे,
जिससे जग में नाम करोगे....
मैंने काफी सोच के बोला,
अपना छोटा सा मुंह खोला....
पापा मै अच्छा इन्सान बनूँगा,
हर गरीब की मदद करूँगा....
जिससे उनका होगा काम,
जग में होगा मेरा नाम....
पापा कहते है बेटा,
तुम भी पढ़ने जाया करो....


लेखक: सागर कुमार

शनिवार, नवंबर 13

कविता : आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ

 

कविता : चिड़िया रानी - चिड़िया रानी

कविता: जल का न करे दुरूपयोग

जल का करे दुरूपयोग


जल ही जीवन है हम सबका,
कभी करे दुरूपयोग इसका....
जल बिन जीवन होगा कैसा,
बंजर धरती बिन प्राणी जैसा....
आओ हम मिल सरंक्षण करे इसका,
जल ही जीवन है हम सबका....
आओ मिल पानी की बूंद बचाए हम,
जीवन के सबको सुखी बनाये हम....
जल के दुरूपयोग को मिल रोके हम,
दुनिया के जीवन आगे बढाये हम....
जल का है महत्त्व बड़ा,
इससे ही हर चीज खड़ा...
जल का हम सब करते उपयोग,
इसलिए कभी करे इसका दुरूपयोग.....
लेखक: धर्मेन्द्र कुमार

कविता: खाई गधे की लात

खाई गधे की लात


एक लड़का जिसका नाम था सोहन,
वो दिन रात करता था आलसीपन...
कुछ दिन बाद आया जाड़ा,
खूब याद किया उसने पहाड़ा...
एक दिन घर में बैठा वो अन्दर,
अपनी जेब में रखे चुकंदर...
जमके उसने चुकंदर खाया,
दायें बाएं जो भी पाया....
चुकंदर में थे बड़े- बड़े कीड़े,
सोहन के पेट में पड़ गए कीड़े....
सोहन फ़िर तो चला बाज़ार,
गधे पर हुआ जमके सवार....
अक्ल से था वो निपट गंवार,
बिन के लगाम के हुआ सवार....
गधे ने फ़िर मारी लात ,
सोहन ने खाई चार गुलाट....
लेखक: मुकेश कुमार

गुरुवार, नवंबर 11

कविता: मोटा-मोटी

मोटा-मोटी

एक था मोटा, एक थी मोटी,
खाते थे, दोनों दस-दस रोटी।
एक दिन उनके घर आए मेहमान,
बोले लगी है भूख कराओ खान-पान।
मोटी थी बड़ी आलसी और खोटी,
बोली घर में बनी नही है रोटी।
चट से बोली आटा रखा है घर में,
झट से पका लो रोटी चूल्हे में।
अभी नींद लगी है, इसलिए मुझे है सोना,
पक जाए अगर रोटी, तो मुझे जगा देना।
लेखक: आदित्य कुमार

बुधवार, नवंबर 10

कक्षा में है नही घड़ी

कक्षा में है नही घड़ी


कक्षा है भाई कितनी बड़ी,
पर लगी नही है कोई घड़ी...
मन करता है सब बच्चों का,
लाकर लगा दे एक घड़ी...
पर डर लगता है सब बच्चों को, टीचर, प्रिंसपल के डंडे से...
बच्चे भी कुछ कह नही पाते,
अपने क्लास के टीचर से...
कक्षा है भाई कितनी बड़ी,
पर लगी नही है कोई घड़ी...
लेखक: ज्ञान कुमार

मंगलवार, नवंबर 9

कहानी: दो दोस्त और जंगल का राक्षस

दो दोस्त और जंगल का राक्षस


बहुत समय पहले की बात है की एक छोटा सा गाँव था, उसी गाँव में दो मित्र रहते थेएक का नाम था गंगू और दूसरे का नाम छंगू थागंगू चालक और बुद्धिमान था, क्योंकि वह पढ़ने जाता था, पर छंगू ही चालाक था ही बुद्धिमानवह बिल्कुल अनपढ़ और भोला था, यहाँ तक की उसने स्कूल का मुंह भी नही देखा थाघर में गरीबी होने के कारण वह पढ़ सका और छोटी उम्र में ही काम करने लगागंगू हमेशा छंगू के सामने अपना घमंड दिखाया करता था कि मै तुमसे कितना चालाक और बुद्धिमान हूँ, मगर छंगू कभी भी इन बातों का बुरा नही मानता थावो कहता था हा यार मै अनपढ़ भला कैसे बुद्धिमान हो सकता हूँ समय के साथ धीरे -धीरे दोनों मित्र बड़े हो गएएक दिन दोनों मित्रों ने आपस में बात की, कि चलो कंही घूमने चलते हैछंगू ने कहा कि चलो आज उस पास के जंगल में चलते हैदोनों मित्र टहलते-टहलते गाँव से दूर उस जंगल में गए, चारो तरफ़ घने पेड़ के जंगल थेगर्मी बहुत तेज थी गंगू को तेज प्यास लगी, गंगू कहने लगा अगर थोडी देर में मुझे पानी नही मिला तो शायद मै प्यास से मर जाऊछंगू ने गंगू को एक पेड़ के छाये में लिटा दिया और ख़ुद पानी ढूढ़ने के लिए जंगल कि तरफ़ चल दियाभटकते- भटकते आखिरकार वो एक कुएं के पास पहुँच ही गयाउस कुएं के पास के पेड़ पर दो बड़े राक्षस रहते थेकुएं का पानी मुहं तक लबालब भरा था, छंगू को भी अब तक प्यास लग गई थीवो झुक कर पानी पीने लगा, पानी पीने कि आवाज सुनकर पेड़ से दोनों राक्षस धड़ाम से जमीं पर कूद पड़ेछंगू अचानक आवाज सुनकर थोड़ा डर गया उसने पीछे देखा तो दो बड़े राक्षस खडे थेदोनों राक्षस ने छंगू से पूछा कि तुम कौन हो और यंहा पर क्या कर रहे होछंगू बहादुर था उसने बिना डरे बताया कि मेरा नाम छंगू है, और मै पास के गाँव का रहन वाला हूँमै और मेरा दोस्त गंगू आज इधर घूमने आये थेमेरा दोस्त अभी प्यास से बेहाल होकर पेड़ के पास पड़ा है, मै उसके लिए पानी लेने आया हूँछंगू के निडरता और दोस्त के लिए प्यार देखकर दोनों राक्षस बहुत खुश हुए , दोनों राक्षसों ने कहा कि हम दोनों भी दोस्त है और हम दोनों एक दूसरे के लिए जान भी दे सकते हैउन्होंने छंगू को एक बर्तन में पानी तथा ढेर सारे मिठाई, फल दिए, और कहा अपने दोस्त को खिलाना और हमेशा अच्छे दोस्त बनकर रहनाछंगू पानी और मिठाई लेकर गंगू के पास पंहुचा, उसे पानी पिलाया और फ़िर दोनों ने जमकर मिठाई औरफल खाया, साथ ही छंगू ने गंगू को उन दोनों राक्षस कि बात भी बताई कि किस तरह पानी लेते हुए वे दोनों भले राक्षस गए थे, और उन्होंने ने ये फल और मिठाई दिएगंगू को कहानी सुनते - सुनते आँखों से आंसू गए कि किस तरह छंगू ने अपने जान की परवाह करते हुए उसकी जान बचाई, साथ ही गर्व भी हुआ कि उसका दोस्त कितना बहादुर हैमगर अपने पर शर्मिंदा होने लगा कि मै किस तरह छंगू को नीचा दिखता था, और अपने पर घमंड करता थागंगू रोते हुए अपने गलतियों के लिए छंगू से माफ़ी मांगने लगा, छंगू ने उसे गले लगाते हुए कहा धत पगले दोस्तों में माफ़ी मांगते है, इतना कहते-कहते छंगू के भी आँखों से आंसू टपकने लगेदोनों दोस्त वापस अपने गाँव आये और खूब मजे से प्रेम पूर्वक रहने लगे
लेखक: आदित्य कुमार

कविता: बकरी खाती खीरा ककड़ी

बकरी खाती खीरा ककड़ी


एक थी प्यारी बकरी,
खाती हरदम खीरा ककड़ी...
जब दिन आया मंगल,
वो भाग के पहुँची जंगल...
जंगल में मिले दो भालू,
दोनों खा रहे थे कच्चे आलू...
बकरी को खिलाया कच्चा आलू,
खाकर बकरी बन गई चालू...
भालू ने सोचा बकरी को खा लूँ,
नरम मुलायम मांस मै पा लूँ...
बकरी निकली बहुत ही चालू,
भालू को पिलाया जम के दारू...
दारू पीकर भालू बोला खीरा-खीरा,
बकरी ने झटपट भालू को चीरा...
भालू ने मरते ही बोला जय हो,
भैया बकरी से अब रखो भय हो...
सब भालू अब खाना खीरा ककड़ी,
जैसे हरदम खाती थी वो बकरी..
एक थी प्यारी बकरी,
खाती हरदम खीरा ककड़ी...
लेखक - सागर कुमार

सोमवार, नवंबर 8

कविता: बन्दर और कलेंडर

बन्दर और कलेंडर


आसमान में टंगा कलेंडर,
उसको पढ़ रहे थे हाथी बन्दर....
आसमान से गिरा जब बन्दर,
चिपका गया धरती के अन्दर
धरती के अन्दर थे तीन बन्दर,
तीनों ने मारे जम के थप्पड़ ...
बन्दर भगा किचन के अन्दर,
खाने लगा घी और मक्खन....
लेखक: मुकेश कुमार

कविता: सब्जी की गाड़ी

सब्जी की गाड़ी


आलू बैगन की थी गाड़ी,
उसमें बैठी दस सवारी...
पहिया बने थे धनिया भइया,
हार्न बनी थी लौकी...
स्टेरिंग बने थे कद्दू जी,
गेयर बनी थी मूली...
लाइट बने थे लाल टमाटर,
दिन में बैठे थे मुंह बंद कर...
जैसे ही अँधेरा घिर आता,
चलते थे अपना मुंह खोलकर...
सीट बने थे गोभी जी,
ड्राईवर बने थे शलजम जी....
एक दिन की हम बात बताएं,
सभी जरा सा गौर से सुनिए...
शाम को सूरज ढलने को आया,
चारो तरफ़ अँधेरा छाया...
आपस में दो गाड़ी लड़ गई,
एक दूजे से दोनों भिड गई
एक थी लकड़ी की गाड़ी,
दूजी थी सब्जी की गाड़ी...
सब्जी की गाड़ी टूट गई,
अलग - अलग वो छिटक गई...
सवारी सारे कूद पड़े थे,
गाड़ी से वे दूर खड़े थे...
सबने मिलकर सब्जी को उठाया,
घर ले जाकर सबको बिठाया...

 घर में सबने सब्जी बनाया,
बच्चे बूढे सबने मिल खाया...



लेखक: आदित्य कुमार

रविवार, नवंबर 7

कविता: मेहनत का दर्द

मेहनत का दर्द

कच्ची कच्ची मिटटी खोदी ।
खोदकर पानी में फुला दी ॥
गोल करके फिर सांचे में डाली ।
ईट हुई गड़बड़ मालिक ने दी गाली॥
गाली सुनकर गुस्सा आया ।
गुस्से को मन में भड़काया ॥
तब पता चला मालिक होते है कंजूस।
गाली देकर मन को पहुचाते है ठेस ॥

आदित्य कुमार

शनिवार, नवंबर 6

कविता : रविवार का दिन

रविवार का दिन 

रविवार का दिन है कितना अच्छा,
बंद रहती है स्कूल की सभी कक्षा....
इस दिन रहती सभी की छुट्टी ,
बच्चा बच्चा सारा दिन करता मस्ती...
फिल्म देखना फुटबाल खेलना,
नाटक सीखना और दिखाना ...
इधर उधर खूब घूमने जाना ,
यही है दिन भर का दिनचर्या ...
रविवार का दिन है कितना अच्छा,
बंद रहती है स्कूल की सभी कक्षा...

लेखक: धर्मेन्द्र कुमार

गुरुवार, नवंबर 4

सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई 

नमस्ते साथियों
आपको और आपके पूरे परिवार को बचपन के रंग के पूरे परिवार कि तरफ से दीपावली मुबारक हो,
दीपावली की अनेक अनेक शुभकामनाएं . ये दीपावली आप सब के जीवन में खुशियाँ ही
खुशियाँ लाये . आप सब का जीवन मंगलमय हो. यही दुआ है हमारी.


कविता: एक किसान गया कलकत्ता

एक किसान गया कलकत्ता


एक किसान गया कलकत्ता।
उसने खाया पान का पत्ता॥
मुंह हो गया उसका लाल।
रात में किया मुर्गे को हलाल॥
जमकर उसने मुर्गा खाया।
किसी को घर में नही बताया॥
घर में मांस की बदबू आई
उसकी पत्नी सह नही पाई॥
पत्नी उसकी पड़ी बीमार।
किसान ने मन में किया विचार॥
मांस कभी खाऊँगा।
नहीं किसी को सताऊंगा॥
अबकी बार गया कलकत्ता।
नहीं खाऊँगा पान का पत्ता

लेखक: मुकेश कुमार

मंगलवार, नवंबर 2

जीवनाशाला के बच्चों के द्वारा प्रत्स्तुत एक नृत्य