मंगलवार, नवंबर 13

दीपावली की शुभकामनाएं

आपको और आपके पूरे परिवार को बचपन के रंग परिवार की तरफ से दीपावली की शुभकामनाएं।



शनिवार, अक्तूबर 20

कविता - सर्दी आई

मुन्ना जी क्यों काँपे थर-थर,
क्या घर में हुई पिटाई। 
भैया ऐसी बात नहीं है,
मुझे कपकपाती सर्दी है आई। 


----सालेह 
अपना स्कूल
 पनकी पड़ाव 

गुरुवार, अक्तूबर 4

श्रवण कुमार का चित्र

अपना स्कूल पनकी पड़ाव की बच्ची शालेहा ने श्रवण कुमार का एक बहुत ही सुन्दर चित्र बनाया था जिसको में आप सभी के सामने रख रहा हूँ।

 

गुरुवार, सितंबर 20

मेरी कविता - बकरी

मेरी बकरी काली काली,
सीधी-सीधी भोली-भली।
इसकी तो हर बात निराली,
खाकर पत्ते करे जुगाली।
दूध इसका मीठा-मीठा, 
मुन्ना इसका बहुत अनूठा।

 कवि - काजीमुददीन
अपना स्कूल पनकी पड़ाव


रविवार, सितंबर 2

मेरी कविता - कुत्ता

मैंने झबरा कुत्ता पाला,
घर का सच्चा रखवाला।
भला बुरा यह सब कुछ जाने,
 चोरों को फ़ौरन पहचाने।
--- कजुमिदीन अपना स्कूल, पनकी पड़ाव 


शुक्रवार, अगस्त 31

मेरे चित्र

एक बच्ची ने एक बुजुर्ग को रस्ते पर लोगों से कुछ मांगते हुए देखा और वह उसको रोज देखती थी . एक दिन उस बच्ची ने अपने कला करने के समय में उस बुजुर्ग का चित्र बनाने की कोशिश की।


गुरुवार, जून 7

35 लाख रुपये खर्चा

योजना आयोग का दफ्तर में हगने और मूतने के लिए 35 लाख रुपये खर्चा हो जाते है, और आम जनता को रहने के लिए एक झोपड़ी नसीब नहीं हो रही है. योजना आयोग के पदाधिकारी इस खर्च को सही बता रहे है. एक तरफ ये गाँव में शौचालय 1000 रुपये में बना देते है और दूसरी तरफ 35 लाख रुपये ये तो गलत बात है. काम दोनों में एक ही होना है, पर काम करने वाले अलग है. अब हमें तय करना है की जिस देश में लोग  भूख से मर रहे हो, जिस देश में किसान आत्महत्या कर रहा हो, जिस देश में लाखों युवा बेरोजगार है उस देश की विकास  के लिए योजना बनाने वाले कहाँ मूतेंगे और कहाँ हगेंगे ? चिंता मत करो जिस दिन देश की जनता हिसाब मागेगी उस दिन इनको दोनों  के लिए खेत भी नसीब नहीं होगा.





शुक्रवार, अप्रैल 27

स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,

स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................

हर आगन का बुढा सूरज, परचम परचम दहक उठा,
काल सिंधु के ज्वार परिश्रम, के फूलो से महक उठा।
नाश और निर्माण जवानी की निश्छल किलकारी है,
कल का गीत लिए होठों पर आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................


स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................


जंजीरों से शुब्ध युगों तक प्रणय गीत से रणभेरी ,
मुक्ति प्रिया की पग ध्वनी लेकर घर घर लगा रही फेरी।
हेर नारे में महाकाव्य के स्राजन्कर्म की बारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................


स्रष्टि बीज कहा नाश नाश न हो हर मौसम की तयारी है,
कल का गीत लिए होठो पर, आज लड़ाई जारी है।
आज लड़ाई जारी है................
.....महेशवर
संकलन: समर तो शेष है....

गुरुवार, अप्रैल 26

चिंता रहती है....

वीरों को - आन की
नाविक को - तूफ़ान की
मुसाफिर को - सामान की
भिखारी को - दान की
ऋषि को - वरदान की
कंजूस को - मेहमान की
गायक को - तान की
छात्र को - इम्तेहान की
पंक्षी को - उड़ान की
प्रोफ़ेसर को - बखान की
आमिर को - शान की
किसान को - लगान की
नेता को - मतदान की
भगवान को - जहान की
शराबी को - शुरापान की
ड्राईवर को - चालान की
कायर को - जान की
कमज़ोर को - बलवान की
व्यापारी को - नुकशान की
माँ-बाप को - संतान की 

---  शैलेन्द्र शील पाठक

बुधवार, अप्रैल 18

कविता - सब कुछ बदल गया....

ये दुनिया बदल गयी,
ये जहाँ बदल गया ।
आज के इस संसार में,
ये इन्सान ही बदल गया ।

आज नेताओं और लोगों के चरित्र,
बदल गए ।
भ्रष्टाचारी इस देश में,
गरीबी के मायने बदल गए ।

नेता वोटों के खातिर,
जाने क्या क्या वादे कर गए ।
वादों को भी न पूरा किया,
पर अपनी झोली ये भर ले गए ।   

कवि : धर्मेन्द्र कुमार