बुधवार, जनवरी 5

स्वर्ग से विदाई

स्वर्ग से विदाई

भाईयों और बहनों!
अब ये आलिशान इमारत
बन कर तैयार हो गयी है.
अब आप यहाँ से जा सकते हैं.
अपनी भरपूर ताक़त लगाकर
आपने ज़मीन काटी
गहरी नींव डाली,
मिटटी के नीचे दब भी गए.
आपके कई साथी.
मगर आपने हिम्मत से काम लिया
पत्थर और इरादे से,
संकल्प और लोहे से,
बालू, कल्पना और सीमेंट से,
ईंट दर ईंट आपने
अटूट बुलंदी की दीवार खड़ी की.
छत ऐसी कि हाथ बढाकर,
आसमान छुआ जा सके,
बादलों से बात की जा सके.
खिड़कियाँ क्षितिज की थाह लेने वाली,
आँखों जैसी,
दरवाजे, शानदार स्वागत!
अपने घुटनों और बाजुओं और
बरौनियों के बल पर
सैकडों साल टिकी रहने वाली
यह जीती-जागती ईमारत तैयार की
अब आपने हरा भरा लान
फूलों का बागीचा
झरना और ताल भी बना दिया है
कमरे कमरे में गलीचा
और कदम कदम पर
रंग-बिरंगी रौशनी फैला दी है
गर्मी में ठंडक और ठण्ड में
गुनगुनी गर्मी का इंतजाम कर दिया है
संगीत और न्रत्य के
साज़ सामान
सही जगह पर रख दिए हैं
अलगनियां प्यालियाँ
गिलास और बोतलें
सज़ा दी हैं
कम शब्दों में कहें तो
सुख सुविधा और आजादी का
एक सुरक्षित इलाका
एक झिलमिलाता स्वर्ग
रच दिया है
इस मेहनत
और इस लगन के लिए
आपकी बहुत धन्यवाद
अब आप यहाँ से जा सकते हैं.
यह मत पूछिए की कहाँ जाए
जहाँ चाहे वहां जाएँ
फिलहाल उधर अँधेरे में
कटी ज़मीन पर
जो झोपडे डाल रखें हैं
उन्हें भी खाली कर दें
फिर जहाँ चाहे वहां जाएँ.
आप आज़ाद हैं,
हमारी जिम्मेदारी ख़तम हुई
अब एक मिनट के लिए भी
आपका यहाँ ठहरना ठीक नहीं
महामहिम आने वाले हैं
विदेशी मेहमानों के साथ
आने वाली हैं अप्सराएँ
और अफसरान
पश्चिमी धुनों पर शुरू होने वाला है
उन्मादक न्रत्य
जाम झलकने वाला है
भला यहाँ आपकी
क्या ज़रुरत हो सकती है.
और वह आपको देखकर क्या सोचेंगे
गंदे कपडे,
धुल से सने शरीर
ठीक से बोलने और हाथ हिलाने
और सर झुकाने का भी शऊर नहीं
उनकी रुचि और उम्मीद को
कितना धक्का लगेगा
और हमारी कितनी तौहीन होगी
मान लिया कि इमारत की
ये शानदार बुलंदी हासिल करने में
आपने हड्डियाँ लगा दीं
खून पसीना एक कर दिया
लेकिन इसके एवज में
मजदूरी दी जा चुकी है
अब आपको क्या चाहिए?
आप यहाँ ताल नहीं रहे हैं
आपके चेहरे के भाव भी बदल रहे हैं
शायद अपनी इस विशाल
और खूबसूरत रचना से
आपको मोह हो गया है
इसे छोड़कर जाने में दुःख हो रहा है
ऐसा हो सकता है
मगर इसका मतलब यह तो नहीं
कि आप जो कुछ भी अपने हाथ से
बनायेंगे,
वह सब आपका हो जायेगा
इस तरह तो ये सारी दुनिया
आपकी होती
फिर हम मालिक लोग कहाँ जाते
याद रखिये
मालिक मालिक होता है
मजदूर मजदूर
आपको काम करना है
हमे उसका फल भोगना है
आपको स्वर्ग बनाना है
हमे उसमें विहार करना है
अगर ऐसा सोचते हैं
कि आपको अपने काम का
पूरा फल मिलना चाहिए
तो हो सकता है
कि पिछले जन्म के आपके काम
अभावों के नरक में
ले जा रहे हों
विश्वास कीजिये
धर्म के सिवा कोई रास्ता नहीं
अब आप यहाँ से जा सकते हैं
क्या आप यहाँ से जाना ही
नहीं चाहते ?
यहीं रहना चाहते हैं,
इस आलिशान इमारत में
इन गलीचों पर पाव रखना चाहते हैं
ओह! ये तो लालच की हद है
सरासर अन्याय है
कानून और व्यवस्था पर
सीधा हमला है
दूसरों की मिलकियत पर
कब्जा करने
और दुनिया को उलट-पुलट देने का
सबसे बुनियादी अपराध है
हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे
देखिये ये भाईचारे का मसला नहीं हैं
इंसानीयत का भी नहीं
यह तो लडाई का
जीने या मरने का मसला है
हालाँकि हम खून खराबा नहीं चाहते
हम अमन चैन
सुख-सुविधा पसंद करते हैं
लेकिन आप मजबूर करेंगे
तो हमे कानून का सहारा लेने पडेगा
पुलिस और ज़रुरत पड़ी तो
फौज बुलानी होगी
हम कुचल देंगे
अपने हाथों गडे
इस स्वर्ग में रहने की
आपकी इच्छा भी कुचल देंगे
वर्ना जाइए
टूटते जोडों, उजाड़ आँखों की
आँधियों, अंधेरों और सिसकियों की
मृत्यु गुलामी
और अभावों की अपनी
बेदरोदीवार दुनिया में
चुपचाप
वापिस
चले जाइए!
.........गोरख पाण्डेय

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