गुरुवार, सितंबर 20

मेरी कविता - बकरी

मेरी बकरी काली काली,
सीधी-सीधी भोली-भली।
इसकी तो हर बात निराली,
खाकर पत्ते करे जुगाली।
दूध इसका मीठा-मीठा, 
मुन्ना इसका बहुत अनूठा।

 कवि - काजीमुददीन
अपना स्कूल पनकी पड़ाव


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