योजना आयोग का दफ्तर में हगने और मूतने के लिए 35 लाख रुपये खर्चा हो जाते है, और आम जनता को रहने के लिए एक झोपड़ी नसीब नहीं हो रही है. योजना आयोग के पदाधिकारी इस खर्च को सही बता रहे है. एक तरफ ये गाँव में शौचालय 1000 रुपये में बना देते है और दूसरी तरफ 35 लाख रुपये ये तो गलत बात है. काम दोनों में एक ही होना है, पर काम करने वाले अलग है. अब हमें तय करना है की जिस देश में लोग भूख से मर रहे हो, जिस देश में किसान आत्महत्या कर रहा हो, जिस देश में लाखों युवा बेरोजगार है उस देश की विकास के लिए योजना बनाने वाले कहाँ मूतेंगे और कहाँ हगेंगे ? चिंता मत करो जिस दिन देश की जनता हिसाब मागेगी उस दिन इनको दोनों के लिए खेत भी नसीब नहीं होगा.
यह इस देश का दुर्भाग्य है की ऐसे दृष्टिहीन लोगों के हाथ में देश की बागडोर है जिन्हें वास्तविक स्थितियों का पता होते हुए भी ऐसा करते हैं ....!
जवाब देंहटाएंkahne ko kuch aur hae,karne ko kuch aur,
जवाब देंहटाएंkewal muten aur hagenge kahenge ,DIL MANGE MORE
------और भी अधिक दुर्भाग्य इसलिये है कि ...आप -हम ही इन लोगों को वोट देकर देश की बागडोर सौंपते हैं.....
जवाब देंहटाएं-----वैसे जिसकी जितनी औकात है उसे उतना ही मिलता है ....इसमेन बुरा मानने की कोई बात नहीं....
जवाब देंहटाएंdrshyam kiski kya aukaat hai ye hum aap tay nahi kar sakte........
जवाब देंहटाएंkiski kitni aukaat hai ye hum usi aadmi per kyu nahi chood dete jiski aukaat tay honi hai....