बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें
हमको तो सब कुछ याद है,
अब तो न मार खायेंगे...
जो कुछ याद नही है,
उसे तो बिल्कुल रट लेंगे...
अब होने को है पेपर उसमे लिख देंगे,
जो भी देंगे उसको हल कर देंगे...
ये सब याद हुआ है डंडे के बल पे,
टीचर तो बैठे रहते कुर्सी पे...
हाथ में हरदम ले कर डंडे,
मार से रोज टूटे कितने डंडे...
भोले भाले और मुस्काते सारे बच्चे आते है,
रात को रटते सुबह भूल ही जाते है...
डंडे खाते फिर याद करते,
रोते रोते घर को जाते....
डंडे के बल पर हम कब तक पढ़ पाएंगे,
क्या कोई अब प्यारे टीचर आयेंगे....
बिन मारे क्या हम नही पढ़ पाएंगे,
बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगे....
लेखक: अशोक कुमार
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