धर्म के ठेकेदारों ने अपने निजी स्वार्थ में मजहब की दीवारें खड़ी की हैं..... सियासत करने वाले भी इन दीवारों का इस्तेमाल अपने हित में करते हैं ... नतीजा ... नफरत, कत्लेआम और खून खराबा ... अब जरुरत है ऐसे नापाक इरादे वालों को पहचानने की और उन्हें नकारने की ... गुरुदास मान के गीत, कुछ पेपर क्लिपिंग्स, पोस्टर और चित्रों की मदद से हमारी कोशिश है कि देश में हर तरफ अमन चैन हो और हमारी गंगा जमुनी तहजीब बची रहे.... आमीन ....
बहुत बढ़िया कोशिश !! मुझे तो ऐसे मौकों पर निदा फ़ाजली साहब की ये लाइनें याद आती हैं।
जवाब देंहटाएंदिवारें उठाना तो हर युग की सियासत है,
ये दुनियां जहां तक है इंसा की विरासत है।
खुशियों में चमक वोही,
अश्कों में है कसक वही,
चाहे कहीं भी जाओ तुम,
प्यार में है महक वही,
हर आंख शरारत है,
हर दिल में मोहब्बत है।
बच्चों की मुस्कुराहटें,
मां के दिलों की आहटें,
एक सी हैं हर इक जगह,
चेहरों की जगमगाहटें,
तुम मेरी जरूरत हो,
मैं तेरी जरूरत हूं।
गेंहू का रूप एक है,
जल का स्वरूप एक है,
आंगन जुदा-जुदा ही सही,
सूरज की धूप एक है,
मंदिर में जो मूरत है,
मस्जिद में वो कुदरत है।