बचपन के रंग में हम अपनी बातों, अपनी कोशिश और अपने विचारों को रख कर आप तक पहुँचाना चाहते है.
मेरे बचपन की कविता...मैं हूं बच्चा अकल का कच्चा,लेकिन सच्चा।पढने जाता रोज स्कूल,घर पर आकर जाता भूल,क्या..पढाई..फ़िर भी लेकिन कभी न मैंने,पंडित जी से मार है खाई;क्योंकि आखिर मैं हूं बच्चा,अकल का कच्चा,लेकिन सच्चा ॥
मेरे बचपन की कविता...
जवाब देंहटाएंमैं हूं बच्चा
अकल का कच्चा,
लेकिन सच्चा।
पढने जाता रोज स्कूल,
घर पर आकर जाता भूल,
क्या..पढाई..
फ़िर भी लेकिन
कभी न मैंने,
पंडित जी से मार है खाई;
क्योंकि आखिर मैं हूं बच्चा,
अकल का कच्चा,
लेकिन सच्चा ॥