शुक्रवार, दिसंबर 31

अपना स्कूल पनकी पड़ाव

सलाम साथियों


कल मै अपने नन्हे साथी चन्दन को लेकर पनकी पड़ाव के लिए निकला. हमारी मंजिल वहां पर जागृति बाल विकास समिति द्वारा चलाया जा रहा अपना स्कूल था, स्कूल पनकी पड़ाव में रहने वाले कुछ ऐसे परिवारों के लिए चलाया जा रहा था जो अपना गुजरा कबाड़ बिन कर और उनको बेच कर चलते थे. इस काम में उनका पूरा परिवार लगा रहता है.
जब हम स्कूल पहुंचे तो मुझे बिलकुल विश्वास नहीं हुआ कि ये सभी बच्चे कबाड़ बिनने का काम करते होंगे. सभी बच्चे बिलकुल साफ़ थे, सभी बहुत अच्छे लग रहे थे. हम लोग स्कूल में बैठे और आपस में एक दुसरे के साथ परिचय किया. तब मुझे पता चला कि वो सभी बच्चे असम के है और मुस्लिम समुदाय से है. बच्चों ने कवितायेँ सुनाई, मैंने भी उनको एक कहानी सुनाई, चन्दन ने भी उनको एक कविता सुनाई. इन्ही बच्चों में से पांच बच्चे करीब ३ किलोमीटर दूर से एक रिक्शे को खुद चलाकर पढने आते है. बच्चें अपने पढने के लिए सहायक सामग्री हरदास भाई के मार्गदर्शन में बनाते है, स्कूल में उनका खुद का शब्दकोष था, कविता की कापी थी जिसमें वो अपनी बनाई कविताएँ लिखते थे.
मैंने एक बच्चे से पूछा की तुम लोग पूरे दिन में क्या क्या करते हो. तो पता चला की बच्चे सुबह पांच बजे जागकर पढ़ते है, उसके बाद नहा- धोकर, अपना भोजन करते है और फिर अपने काम पर निकल जाते है. फिर करीब १ बजे तक वो लौट आते है. कभी कभी तो वो ७ किलोमीटर दूर एक क़स्बा कल्यानपुर तक चले जाते है. लेकिन वो अपने स्कूल के समय से पहले वापस आ जाते है, बच्चों ने बताया की सोमवार से लेकर शनिवार तक उनके पिता और माता उनको ज्यादा दूर तक कबाड़ बिनने नहीं जाने देते, ताकि वो अपनी पढाई के समय तक वापस आ जाये.
एक बच्ची जिसका नाम सलेहा है उसने कहा की भैया जी में आपको एक जादू देखाऊ, मै हाँ कर दी और सलेहा ने मुझे एक कागज दिया जो की काफी मुड़ा हुआ था और कहा भैया जी इसको खोलिए, जिससे ही मैंने उसको खोला उसमे से एक आवाज आई जो की शायद सभी को डरा सकती है और उसने मुझे भी डराया. मुझे ये जादू बहुत पसंद आया. बच्चों ने वो जादू मुझे दिया, मै अभी तक उसको आपने ५ साथियों को दिखा चुका हूँ, कागज खोलते समय उनका चेहरा देखने लायक ही होता है.
बच्चों को कबाड़ में मिलने वाली काम की चीजो को वो अपने काम के प्रयोग  में लाते है. बच्चे हर शनिवार को बाल सभा करते है, जिसमें वो एक दुसरे की परेशानी के ऊपर भी बात करते थे, चित्र बनाते थे, कविता लिखते थे.
मुझे ये स्कूल और यहाँ के बच्चे बहुत अच्छे लगे क्योकि वो अपने काम के साथ साथ ही अपनी पढाई भी बहुत अच्छे से कर रहे है. हरदास भाई  सिर्फ गिनती, भाषा ही नहीं सिखाते  है बल्कि कैसे अपने जीवन को बेहतर बनाए ये भी सिखाते है. हरदास भाई और सभी बच्चों को हमारा सलाम.

बच्चों की कवितायेँ सुनाने के लिए लिंक पर क्लिक करे.
http://www.youtube.com/watch?v=ma6G80J-efg





आपका
दीन दयाल और चन्दन

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