साढ़े छह साल की उम्र में होटल में काठ की टेबल पर पोछा लगाने के काम से अपना कैरियर शरू किया. कुछ समय बाद ग्राहकों के गिलास पकड़ने लगा, फिर उनके आगे सलीके से प्लेट भी रखने लगा. शुरू में उसे थोड़े सिक्के मिलते थे बाद में कागज के नोट मिलने लगा. उसका मालिक उसपर एतबार जरा कम करता था. यह दुकान में आने-जाने वालों का विशेष ख्याल रखने लगा. फटाफट आर्डर लेना, उसे पूरा करना तथा ग्राहकों का बिल मालिक को बताने लगा, जिसके कारण लेन-देन में पहले से सुविधा हो गयी. बाल-दिवस से एक दिन पहले टेबल पर पोछा लगाते हुए शानदार पोज में कोई फोटोग्राफर एक क्लिक के साथ उसका फोटो उड़ा ले गया. धुल-गरदा फांक रही कई राजनैतिक पार्टियों और राजनेताओं में नई जा आ गयी. संसद और विधानसभा में भारी हंगामा हुआ. विपक्षी पार्टियाँ अपनी जगह कायम रही. काम ठप रहा. आकडेबाजों ने करोड़ों का नुकशान बताया. राजनैतिक पंडितों ने देश की मौजूदा हालत पर गंभीर चिंता प्रकट की. सरकार से लेकर अखबार तक कई दिनों तक इस मुद्दे पर हायतौबा मची रही. फिर धीरे-धीरे सब शांत पड़ गया.
वह दिन भर होटल में जूठे-प्लेट्स और पोंछा के काम में बिजी रहता. देर शाम को मालिक से कल सुबह जल्दी आने की बात कहकर तेजी से घर की रह पकड़ लेता. घर पहुँचाने से पहले रास्ते में सोचता जाता कि मालिक को अच्छे मूड में देखकर अपने छोटे भाई को होटल में काम पर रखने के लिए विनती करूँगा.
वह दिन भर होटल में जूठे-प्लेट्स और पोंछा के काम में बिजी रहता. देर शाम को मालिक से कल सुबह जल्दी आने की बात कहकर तेजी से घर की रह पकड़ लेता. घर पहुँचाने से पहले रास्ते में सोचता जाता कि मालिक को अच्छे मूड में देखकर अपने छोटे भाई को होटल में काम पर रखने के लिए विनती करूँगा.
---- अनुग्रह नारायण ओझा, बिहार
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